भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू को याद करो,व्यवस्था परिवर्तन की लडाई तेज करो।

(कार्यक्रम- दिनांक 23 मार्च 2024 को सायंकाल 5.30 बजे स्थानीय दुर्गा नर्सरी उद्यान, उदयपुर)

93 साल पहले 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को अंग्रेज सरकार ने फांसी दे दी। तीनों  देशभक्त हँसते-हँसते फाँसी के फंदे को चूमकर भारतमाता की जय, इन्कलाब जिन्दाबाद और साम्राज्यवाद मुर्दाबाद कहते हुए आजादी की बलिवेदी पर कुर्बान हो गये। दरअसल भगत सिंह एक ऐसी दुनिया का सपना देखते थे जो शोषण, अन्याय, असमानता, अंधविश्वास और अज्ञानता से मुक्त हो। उसमें समता, न्याय और भाईचारा हो।
भगत सिंह का मानना था कि राजनीतिक आजादी के साथ साथ आर्थिक और सामाजिक आजादी भी जरूरी है। उनका मत था कि केवल सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि व्यवस्था परिवर्तन की जरूरत है। असमानता और भेदभाव से मुक्ति जरूरी है। राष्ट्रमुक्ति का उद्देश्य जनमुक्ति है। देश के लाखों-करोड़ों गरीब, किसान, मजदूर, दलित, महिला आदि सभी कमजोर तबकों की मुक्ति ही असली आजादी होगी।

भगतसिंह और उनके साथियों का सपना पुरा नहीं हो सका। कथित आजादी के बाद भी शोषण की चक्की तेज हो गई और शोषित वर्ग उसमें पिसता ही जा रहा है। आकड़ों की बाजीगिरी और पालतू मिडिया द्वारा सत्य को छुपाने के बावजूद महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी बढ़ती ही जा रही है। कोर्ट के आदेशों के बाद चुनावी चंदे के धन्धे की यह सच्चाई नग्न रूप से सामने आ गई है कि राजसत्ता पार्टियों को चंदा देने वाले शोषक वर्ग की सेवा में लिप्त है और चुनाव जीतने के लिये हर प्रकार के साम, दाम, दण्ड और भेद का सहारा लेती है। राजसत्ता हक के लिये आवाज उठाने वालों को आपस में लड़ाने, झुठ फैलाने और फौज और पुलिस के माध्यम से संघर्षों को दबाने का काम करती है। यह पूरी तरह साफ हो गया है कि एक तरफ 5 प्रतिशत लुटेरे है तथा दूसरी तरफ 95 प्रतिशत कमेरे हैं और आज भी उनके बीच घोषित-अघोषित युद्ध चल रहा है।

इस बारे में फाँसी से तीन दिन पहले पंजाब के गवर्नर को लिखे एक पत्र में भगतसिंह, राजगुरू और सुखदेव ने भी लिखा था -‘यह युद्ध तब तक चलता रहेगा, जब तक कि शक्तिशाली व्यक्ति भारतीय जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर अपना एकाधिकार जमाए रखेंगे, चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज पूँजीपति, अंग्रेज शासक अथवा सर्वथा भारतीय हों।’ पत्र के अंत में वह विश्वासपूर्वक एलान करते हैं कि ‘निकट भविष्य में यह युद्ध अंतिम रूप से लड़ा जाएगा और तब यह निर्णायक युद्ध होगा। साम्राज्यवाद और पूँजीवाद कुछ समय के मेहमान हैं।’

क्रांतिकारियों के सपने को पूरा करने और उनके समाजवादी भारत बनाने के विचार को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी हमारे ही कन्धों पर है? शहादत का दिन केवल उनकी शहादत, स्मृति और जीवन को ही याद करने का दिन नहीं है, बल्कि उनके विचारों और उनके सपनों को भी याद करने का दिन है। अमल के लिये संकल्प लेकर आगे बढ़ने का दिन है।

इन्ही मुद्दों पर विचार करने के लिए भगतसिंह, सुखदेव व राजगुरू के साथ ही अवतारसिंह ‘पाश’ का भी शहादत दिवस है। इस अवसर पर दिनांक 23 मार्च 2024 को सायंकाल 5.30 बजे स्थानीय दुर्गा नर्सरी उद्यान में एक सभा रखी गई है जिसमें आप साथियों सहित आमंत्रित है।

शहादत दिवस समारोह समिति, उदयपुर
सम्पर्क- डी.एस.पालीवाल, मो.9950355191

D.S. Paliwal
Convenor,
Shahadat Diwas Samaroh Samiti, Udaipur
(Maryrs Day celebration Committee, Udaipur.)

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